Friday, October 5, 2018

शेयर बाज़ारों में मचे इस 'क़त्लेआम' से आप भी नहीं बच पाएंगे

शेयर बाज़ार क्यों चढ़ता और क्यों गिरता है, इसका सटीक जवाब किसी एक्सपर्ट के लिए बताना नामुमकिन तो नहीं है, लेकिन आसान कतई नहीं है. अगस्त 2013 से शेयर बाज़ारों ने तेज़ी की राह पकड़ी थी और कुछेक स्पीड ब्रेकर्स को छोड़ दें तो बाज़ार में बुल सरपट भाग रहा था और इस रेस में मंदड़िये ख़ुद को किसी तरह बचाए घूम रहे थे.
लेकिन कहा जाता है कि बाज़ार को चलाने में जितनी भूमिका मज़बूत फ़ंडामेटल्स, आर्थिक नीतियों और जीडीपी आंकड़ों की होती है, उससे ज़्यादा ये फ़ैक्टर काम करता है कि कुल मिलाकर सेंटिमेंटस क्या हैं? यूं भी भारतीय शेयर बाज़ारों पर विदेशी संस्थागत निवेशकों यानी एफ़आईआई की मज़बूत पकड़ है और अगर उन्हें अपने नुकसान की ज़रा भी आशंका होती है तो वो अपना पैसा लेकर अपने घर रफू चक्कर होने में जरा भी वक्त नहीं लगाते.
पिछले 24 कारोबारी सत्रों में सेंसेक्स 3700 से अधिक अंकों का गोता लगा चुका है. 29 अगस्त को सेंसेक्स ने अपना 52 हफ्तों का उच्चतम स्तर बनाया था और ये 38,989 की ऊँचाई पर पहुँच गया था.
बैंक, आईटी, फ़ार्मा, एफएमसीजी, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, ऑटोमोबाइल्स या फिर एनबीएफ़सी....कोई भी शेयर इस 'क़त्लेआम' से नहीं बच सका है. कुछ दिनों पहले तक जब मिडकैप और स्मॉलकैप कंपनियों की पिटाई हो रही थी, तब कहा जा रहा था कि बाज़ार में ब्लूचिप कंपनियों के शेयर सुरक्षित दांव हैं, लेकिन पिछले दो दिनों की गिरावट ने इस भ्रम को भी तोड़कर रख दिया है.
गुरुवार को 30 शेयरों वाले सेंसेक्स में सिर्फ़ छह शेयर ही ऐसे रहे, जो मुनाफ़ा देने में कामयाब रहे. रिलायंस इंडस्ट्रीज़, हीरो मोटर्स, टाटा कंसल्टेंसी के शेयर 5 से लेकर 7 फ़ीसदी तक टूट गए.
एक्सपर्ट से पूछें तो इस गिरावट के कारण तो कच्चा तेल, रुपया और महंगाई का डर है, लेकिन लगातार ख़राब हो रहे सेंटिमेंट से सभी चिंतित हैं.
आर्थिक विश्लेषक सुनील सिन्हा कहते हैं, "पहला बड़ा कारण है कच्चा तेल और दूसरा है रुपये की गिरती साख. उम्मीद की जा रही थी कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चा तेल 70 रुपये प्रति बैरल के आस-पास ही रहेगा, लेकिन अब तो ये 76 डॉलर तक पहुँच गया है. तेल महंगा हो रहा है तो उत्पादन की लागत भी बढ़ रही है यानी कुल मिलाकर महंगाई बढ़ने का ख़तरा है. महंगाई बढ़ेगी तो रिज़र्व बैंक को इसे काबू में करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने का चाबुक चलाना होगा."
विश्लेषक मानते हैं कि रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में 0.25 फ़ीसदी की बढ़ोतरी कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो जून के बाद ब्याज दरें 75 बेसिस प्वाइंट्स बढ़ जाएंगी. इससे पहले, सितंबर 2013 और जनवरी 2014 के बीच ब्याज दरों में ऐसी बढ़त देखने को मिली थी.
रुपया लगातार अपनी क़ीमत गंवाता जा रहा है. गुरुवार को ये 73.77 के स्तर तक पहुंच गया है. ये अब तक का सबसे निचला स्तर है.
दिल्ली स्थित एक रिसर्च फ़र्म से जुड़े आसिफ़ इक़बाल बताते हैं, "मुश्किल ये है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों की भारत से पैसे निकालने की रफ़्तार बढ़ रही है. अप्रैल के बाद से अब तक एफ़आईआई बाज़ारों से अरबों डॉलर निकाल चुके हैं. इसकी वजह ये है कि भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मुनाफ़ा तो अच्छा मिलता है, लेकिन जोखिम भी उतना ही होता है. अमरीकी केंद्रीय बैंक ने 2015 के बाद से लगातार आठ बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है और अब ये सवा दो फ़ीसदी के स्तर पर पहुँच गया है."
सुनील सिन्हा इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, "इस बात को समझने की ज़रूरत है कि रुपये को संभालने के भारत के पास विकल्प बहुत अधिक नहीं हैं. ऊपर से तेल भी डॉलर में ख़रीदना पड़ता है. कहा तो ये भी जा रहा था कि रिज़र्व बैंक तेल कंपनियों के लिए स्पेशल डॉलर विंडो खोलेगा, लेकिन ये भी अफ़वाह ही निकली."
बाज़ार बंद होने से ठीक पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सेंटिमेंट सुधारने की कुछ पहल की. उन्होंने घोषणा की कि केंद्र सरकार पेट्रोल और डीज़ल पर डेढ़ रुपये प्रति लीटर की एक्साइज़ ड्यूटी कम करेगी. इसके अलावा तेल कंपनियों को भी एक रुपये का घाटा सहन करना होगा. लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए क्या ये उपाय फौरी नहीं हैं. सुनील सिन्हा इस सवाल के जवाब में कहते हैं, "वैसे कहने को तो पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतों पर सरकारी नियंत्रण नहीं है, लेकिन पहले भी कई ऐसे मौके आए हैं, जब ये नियंत्रण में दिखी हैं, जैसे कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान. लेकिन इससे वित्तीय घाटा बढ़ने की आशंका भी है."
इस सवाल पर आसिफ़ इक़बाल कहते हैं, "विदेशी निवेशक और बाज़ार का सेंटिमेंट अब तक इसलिए पॉज़ीटिव था कि सरकार बार-बार दोहरा रही थी कि चालू वित्तीय घाटे को 3.3 फ़ीसदी तक थामे रखेगी, लेकिन अब जिस तरीके से तेल के भाव और रुपये की गिरावट से सरकार के हाथ-पाँव फूल रहे हैं, उससे लगता नहीं है कि वो चालू वित्तीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने में कामयाब रहेगी."
हालाँकि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने इस फ़ैसले का बचाव करते हुए कहा कि ये निर्णय इसी बात को ध्यान में रखते हुए लिया गया है कि चालू वित्तीय घाटा न बढ़े. जेटली ने कहा, "तेल मार्केटिंग कंपनियों की माली हालत पहले के मुक़ाबले अब बहुत बेहतर है. वो पहले भी ऐसा कर चुकी हैं. डीरेग्युलेशन का सवाल ही नहीं है. लेकिन वित्तीय घाटे पर असर डाले बिना अगर हम पेट्रोल-डीज़ल घटा सकते हैं तभी हमने ये किया है."

Monday, September 24, 2018

हर किसी ने कानून अपने हाथों में ले लिया

गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने बीमार चल रहे अपने दो मंत्रियों को कैबिनेट से बाहर कर उनकी जगह दो नये चेहरों को दी है। मंत्रिमंडल से बाहर किए गये भाजपा के दोनों मंत्री फ्रांसिस डिसूजा और पांडुरंग मडकइकर पिछले कुछ समय से अस्पताल में भर्ती हैं। शहर विकास मंत्री डिसूजा और बिजली मंत्री मडकइकर को ऐसे वक्त कैबिनेट से बाहर किया गया है, जब मुख्यमंत्री पर्रिकर खुद दिल्ली के एम्स में इलाज करा रहे हैं। डिसूजा फिलहाल अमेरिका के एक अस्पताल में भर्ती हैं, जबकि जून में आघात के बाद से बीमार चल रहे मडकइकर का इलाज मुंबई के एक अस्पताल में चल रहा है। उनकी जगह भाजपा के दो नेताओं- निलेश काबराल और मिलिंद नाइक को कैबिनेट में शामिल किया गया है। नाइक पूर्ववर्ती लक्ष्मीकांत पारसेकर सरकार में बिजली मंत्री रह चुके हैं, जबकि काबराल पहली बार मंत्री बने हैं। गौरतलब है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने रविवार को कहा था कि पर्रिकर मुख्यमंत्री बने रहेंगे, लेकिन कैबिनेट में कुछ फेरबदल जरूर होगा। न्यूजर्सी काउंटी के एक वरिष्ठ कानून प्रवर्तन अधिकारी ने अमेरिका के पहले सिख अटॉर्नी जनरल गुरबीर ग्रेवाल की पगड़ी को लेकर नस्ली टिप्पणी करने पर मचे हंगामे के बाद इस्तीफा दे दिया है। बर्जन काउंटी शेरिफ माइकल सौडिनो के 16 जनवरी के बयान को लेकर कई ऑडियो क्लिप डाले जाने के बाद हंगामा मचा। सौडिनो के साथ 4 अंडरशेरिफ ने इस्तीफा दिया है। सौडिनो ने गवर्नर मर्फी की ओर से राजनीतिक दबाव के बाद इस्तीफा दे दिया। डेमोक्रैट सौडिनो का यह तीसरा कार्यकाल था। ऑडियो में सौडिनो को यह कहते सुना जा रहा है कि मर्फी ने ‘पगड़ी’ की वजह से ग्रेवाल को नियुक्त किया। सुप्रीमकोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिमों में प्रचलित बच्चियों के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को पांच जजों वाली संविधान पीठ को भेज दी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ दिल्ली के एक वकील द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग बच्चियों का खतना किए जाने की प्रथा को चुनौती दी गयी है। याचिका में कहा गया है कि अवैध तरीके से बच्चियों का खतना किया जाता है और यह बच्चों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के समझौते, मानवाधिकारों पर संरा की सार्वभौमिक घोषणा के खिलाफ है। इसमें यह भी कहा गया है कि इस प्रथा के चलते बच्चियों के शरीर में स्थायी रूप से विकृति आ जाती है। वहीं, दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के एक समूह ने कहा था कि बच्चियों का खतना कुछ संप्रदायों में किया जाता है। यदि इसकी वैधता का आकलन करना है तो बड़ी संविधान पीठ से कराया जाये। सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ने सोमवार को हॉटस्टार के पूर्व कार्यकारी अजित मोहन को अपने भारतीय परिचालन का उपाध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक नियुक्त करने की घोषणा की। अमेरिका की कंपनी ने कहा कि भारत में प्रबंध निदेशक एवं उपाध्यक्ष के रूप में मोहन टीम के साथ तालमेल बैठाने और यहां फेसबुक की रणनीति को आगे बढ़ाने की भूमिका निभाएंगे। यह फेसबुक इंडिया के लिए नया ढांचा है। कंपनी में वरिष्ठ अधिकारी एशिया प्रशांत के बजाय मेन्लो पार्क, अमेरिका में कंपनी के मुख्यालय में रिपोर्ट करते हैं। मोहन अगले साल की शुरुआत में कंपनी के साथ जुड़ेंगे। सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ने सोमवार को हॉटस्टार के पूर्व कार्यकारी अजित मोहन को अपने भारतीय परिचालन का उपाध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक नियुक्त करने की घोषणा की। अमेरिका की कंपनी ने कहा कि भारत में प्रबंध निदेशक एवं उपाध्यक्ष के रूप में मोहन टीम के साथ तालमेल बैठाने और यहां फेसबुक की रणनीति को आगे बढ़ाने की भूमिका निभाएंगे। यह फेसबुक इंडिया के लिए नया ढांचा है। कंपनी में वरिष्ठ अधिकारी एशिया प्रशांत के बजाय मेन्लो पार्क, अमेरिका में कंपनी के मुख्यालय में रिपोर्ट करते हैं। मोहन अगले साल की शुरुआत में कंपनी के साथ जुड़ेंगे। सुप्रीमकोर्ट ने दिल्ली में अनधिकृत निर्माणों की सीलिंग से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सोमवार को कहा कि हर किसी ने कानून अपने हाथों में ले लिया है। कोर्ट ने एक मोटल के मालिक द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। यह मोटल दक्षिण दिल्ली के छत्तरपुर इलाके में स्थित है। इसे अधिकारियों ने सील कर दिया था। जस्टिस मदन बी लोकूर, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि हर किसी ने कानून अपने हाथों में ले लिया है। पीठ ने कहा कि किसी को यह क्यों कहना पड़ता है कि कृपया कानून का पालन करिए। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि 14 सितंबर को इमारत के बेसमेंट को अधिकारियों ने सील कर दिया था और फिर 20 सितंबर को 6 एकड़ में फैले पूरे परिसर को सील कर दिया। उन्होंने कहा कि शादियों का समय होने के चलते उन्होंने पंडाल बनाए थे, जिसे हटा दिया गया, लेकिन अब भी परिसर सील है, जबकि उन्होंने नोटिस का पहले ही जवाब दे दिया है। सुप्रीमकोर्ट ने दिल्ली में अनधिकृत निर्माणों की सीलिंग से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सोमवार को कहा कि हर किसी ने कानून अपने हाथों में ले लिया है। कोर्ट ने एक मोटल के मालिक द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। यह मोटल दक्षिण दिल्ली के छत्तरपुर इलाके में स्थित है। इसे अधिकारियों ने सील कर दिया था। जस्टिस मदन बी लोकूर, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि हर किसी ने कानून अपने हाथों में ले लिया है। पीठ ने कहा कि किसी को यह क्यों कहना पड़ता है कि कृपया कानून का पालन करिए। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि 14 सितंबर को इमारत के बेसमेंट को अधिकारियों ने सील कर दिया था और फिर 20 सितंबर को 6 एकड़ में फैले पूरे परिसर को सील कर दिया। उन्होंने कहा कि शादियों का समय होने के चलते उन्होंने पंडाल बनाए थे, जिसे हटा दिया गया, लेकिन अब भी परिसर सील है, जबकि उन्होंने नोटिस का पहले ही जवाब दे दिया है।

Tuesday, August 28, 2018

'माओवादी दिमाग़' की गिरफ़्तारियों का पक्ष और विपक्ष क्या है

पुणे पुलिस ने मंगलवार को पांच बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को देश के अलग-अलग हिस्सों से गिरफ़्तार किया.
ये हैं वामपंथी विचारक और कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस.
गिरफ़्तार किए गए सभी लोग मानवाधिकार और अन्य मुद्दों को लेकर सरकार के आलोचक रहे हैं.
सुधा भारद्वाज वकील और ऐक्टिविस्ट हैं. गौतम नवलखा मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार हैं. वरवर राव वामपंथी विचारक और कवि हैं, जबकि अरुण फ़रेरा वकील हैं. वरनॉन गोंज़ाल्विस लेखक और कार्यकर्ता हैं.
गिरफ़्तारी पर पुणे पुलिस बहुत संभल कर बात कर रही है और जानकारी बहुत कम है.
पुणे पुलिस के जॉइंट कमिश्नर ऑफ़ पुलिस (लॉ एंड ऑर्डर) शिवाजी बोडखे ने बीबीसी से बातचीत में गिरफ्तार लोगों को "माओवादी हिंसा का दिमाग़" बताया है.
उन्होंने कहा, ''ये लोग हिंसा को बौद्धिक रूप से पोषित करते हैं... अब अगला क़दम ट्रांज़िट रिमांड लेना है... हम अदालत में इनके ख़िलाफ़ सबूत पेश करेंगे... इन सभी को पुणे लाया जाएगा."
आलोचकों के मुताबिक़ इन बुद्धिजीवियों की गिरफ़्तारियों ने उस सोच को मज़बूत किया है कि मोदी सरकार को अपनी नीतियों की आलोचना बर्दाश्त नहीं.
उधर भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने गिरफ़्तारियों का बचाव किया और कहा, "अमरीका में पढ़े-लिखे लोग ही बम पटक रहे हैं. पढ़े-लिखे लोग ही जिहाद में आ रहे हैं."
माना जा रहा है कि पुणे पुलिस की तरफ़ से मंगलवार की गिरफ़्तारियों का संबंध जनवरी में भीमा कोरेगांव हिंसा से है. तब दलित कार्यकर्ताओं और कथित ऊंची जाति के मराठों के बीच हिंसा हुई थी.
शिवाजी बोडखे के मुताबिक पुणे पुलिस जनवरी से ही मामले की जांच कर रही थी.
जून महीने में मीडिया के एक हिस्से में एक चिट्ठी मिलने का दावा किया गया था जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साज़िश की बात की गई थी.
इस चिट्ठी का स्रोत और विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है. शिवाडी बोडखे ने इस कथित पत्र पर कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस पीबी सावंत ने इन ताज़ा गिरफ़्तारियों को "राज्य का आतंक" और "भयानक आपातकाल" बताया है.
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "आज जो हो रहा है वो स्टेट टेररिज़्म है. आप विपक्ष और आलोचकों की आवाज़ कैसे दबा सकते हैं. सरकार के विरोध में अपनी बात रखना सबका अधिकार है. अगर मुझे लगता है कि ये सरकार आम लोगों की ज़रूरतों को पूरा नहीं करती तो सरकार की आलोचना करना मेरा अधिकार है, अगर तब मैं नक्सल बन जाता हूं तो मैं नक्सल हूँ."
वो कहते हैं, "ग़रीबों के पक्ष में और सरकार के विरोध में लिखना आपको नक्सल नहीं बना देता. ग़रीबों के पक्ष में लिखने पर गिरफ़्तारी संविधान और संवैधानिक अधिकारों की अवहेलना है."
लेखक और इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने मामले में "सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप" की मांग की है ताकि "इस अत्याचार और आज़ाद आवाज़ों के उत्पीड़न" को रोका जा सके.
समाचार चैनल एनडीटीवी से बातचीत में रामचंद्र गुहा ने कहा, "कांग्रेस उतनी ही दोषी है जितनी भाजपा. जब चिदंबरम गृहमंत्री थे तब कार्यकर्ताओं को तंग करना शुरू किया गया था. इस सरकार ने उसे आगे बढ़ाया है."
वो कहते हैं, "गिरफ़्तार किए गए वो लोग हैं जो ग़रीबों, जिनके अधिकारों को छीन लिया गया है, उनकी मदद कर रहे थे. ये (सरकार) नहीं चाहती कि इन लोगों का ज़िला अदालत और हाई कोर्ट में कोई प्रतिनिधित्व हो. ये लोग पत्रकारों को भी परेशान करते हैं, उन्हें बस्तर से भगा देते हैं."
याद रहे कि ऑपरेशन ग्रीनहंट की शुरुआत कांग्रेस के ज़माने में ही हुई थी. ये पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही थे जिन्होंने नक्सलवाद को देश का सबसे बड़ा आंतरिक ख़तरा बताया था.
राजनेताओं और कॉरपोरेट के बीच सांठगांठ का आरोप लगाते हुए रामचंद्र गुहा ने कहा, "मुझे नक्सलियों से नफ़रत है. वो लोकतंत्र के लिए ख़तरा हैं. नक्सल और बजरंग दल एक जैसे हैं- वो एक हिंसात्मक गुट हैं, लेकिन जिन लोगों को परेशान किया जा रहा है वो आदिवासियों, दलितों महिलाओं और भूमिहीनों की रक्षा कर रहे हैं."
इमेज कॉपीरइट ट्विटर पत्रकार और माओवाद पर किताब लिख चुके राहुल पंडिता ने ट्वीट कर कहा, "ये पागलपन है. सुधा भारद्वाज का माओवादियों से कोई लेना-देना नहीं है. वो एक कार्यकर्ता हैं और मैं उनके काम को सालों से जानता हूँ और आभारी रहा हूँ."
एक अन्य ट्वीट में राहुल पंडिता ने लिखा, "अगर आपको माओवादियों के पीछे जाना है तो जाइए, लेकिन जो आपसे सहमत नहीं उनको गिरफ़्तार करना मत शुरू कर दीजिए. ये मानना मूर्खता होगी कि सुधा भारद्वाज जैसा कोई पीएम मोदी की हत्या की साज़िश में शामिल होगा."
उधर राज्यसभा में भाजपा सदस्य और आरएसएस विचार राकेश सिन्हा कहते हैं कि जांच एजेंसियां मात्र अपना काम कर रही हैं.
वो कहते हैं, "तर्क ये है कि उन पर जो आरोप लगाया जा रहा है वो ठीक है या नहीं. क्या एजेंसियां स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं या नहीं? अगर चार्ज लगाया जा रहा है तो क्या उन्हें अदालत जाने से रोका जा रहा है? एक को अदालत ने अभी स्टे दे दिया है."
राकेश सिन्हा के अनुसार,, "इन बुद्धिजीवियों की मदद करने के लिए क़ानूनवेत्ता आएंगे और अदालत में जिरह करेंगे. सरकार की एजेंसियों से प्रमाण मांगेंगे. अगर उनके (एजेंसियों के) पास प्रमाण नहीं होगा तो अदालत उन्हें मुक्त कर देगी.... प्रज्ञा ठाकुर के बारे में जो बातें जांच एजेंसियों ने जुटाई थीं, वो ग़लत साबित हुईं और वो आज बाहर हैं."
आलोचकों के मुताबिक़ कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों की गिरफ़्तारी कुछ नहीं मात्र उत्पीड़न है क्योंकि ऐसे मामलों में ज़मानत मिलने में भी महीनों लग जाते हैं.
इस पर राकेश सिन्हा कहते हैं, "साईंबाबा के बारे में भी यही कहा जाता था. उन्हें आजीवन क़ैद मिली. वो दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर थे. मेरे साथी थे."
भारत और भारत के बाहर कई हलकों में इन ताज़ा गिरफ़्तारियों को भारत में कम होती सहिष्णुता, महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों से जोड़कर भी देखा जा सकता है.
सामाजिक और राजनीतिक विज्ञानी ज़ोया हसन ने इन गिरफ़्तारियों को लोकतंत्र पर हमला बताया और कहा कि "भारत में एक सिस्टमैटिक पैटर्न दिख रहा है कि जो लोग सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ता हैं और आज़ादी और न्याय के लिए आवाज़ उठा रहे हैं उनके ख़िलाफ़ ऐसी कार्रवाई की जा रही है."
इस पर राकेश सिन्हा कहते हैं, "हम चीन में नहीं हैं, जहां न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है. हम भारत में हैं जहां न्यायपालिका स्वतंत्र है. जहां सर्वोच्च न्यायालय के जज भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर सकते हैं. इसलिए धारणा के आधार पर जांच एजेंसियों के ऊपर सवाल नहीं खड़ा करना चाहिए कि पूरी दुनिया में क्या कहा जा रहा है. हम अमरीका की अवधारणा के आधार पर भारत के लोकतंत्र को आगे नहीं बढ़ा सकते."

Friday, August 10, 2018

प्रेस रिव्यू: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूछा, देह व्यापार को संरक्षण देने वाले कौन हैं?

अमर उजाला के मुताबिक इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि देवरिया बालिका संरक्षण गृह कांड की सीबीआई जांच हाईकोर्ट की निगरानी में की जाएगी.
घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि वह कौन हैं जो देह व्यापार करने वालों को संरक्षण दे रहे हैं? कोर्ट ने सरकार और सीबीआई से 13 अगस्त तक पूरी जानकारी देने के लिए कहा है.
कोर्ट ने सीबीआई के अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश को निर्देश दिया है कि सीबीआई जांच को लेकर केंद्र सरकार के आदेश का पता लगाएं.
अदालत ने वकीलों से कहा है कि वे बताएं कि क्या आश्रय गृह में या इसके आसपास कोई सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, साथ ही उन कारों के मालिकों के बारे में भी अवगत कराए जाने को कहा जिनका उपयोग मीडिया की खबरों के मुताबिक, नाबालिग लड़कियों को रात में आश्रय गृह से ले जाने के लिए किया जाता था.
उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए देवरिया के तत्कालीन जिलाधिकारी का तुरंत तबादला कर दिया गया.
इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर दी गई एक ख़बर के मुताबिक यूपी के एक गांव के 70 मुस्लिम परिवार घर छोड़कर चले गए हैं.
बरेली जिले के खेलुम गांव में रहने वाले हिंदू-मुस्लिम परिवारों को पुलिस ने चेतावनी दी है कि अगर कांवड़ यात्रा में कोई रुकावट होती है तो उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी.
इसके लिए 441 स्थानीय लोगों से 5 लाख रुपये का बॉन्ड भी साइन करवाया गया है.
इस गांव के पास के मुस्लिम बहुल इलाके से पिछली बार कांवड़ यात्रा के दौरान झड़प हो गई थी जिसमें कई लोग घायल हुए थे.
इस बार भी यात्रा के लिए वही रूट बनाया गया है और लोगों को चेतावनी दी गई है. लेकिन, इसने मुस्लिम परिवारों की चिंताएं बढ़ा दी हैं और वो घर छोड़कर चले गए हैं.
टाइम्स के मुताबिक 9 राज्यों ने अपने यहां बने शेल्टर होम्स में केंद्र सरकार से ऑडिट कराने से इनकार कर दिया है.
इन राज्यों में यूपी और बिहार का नाम भी है जहां से हाल ही में बालिका गृहों में यौन उत्पीड़न के मामले सामने आए हैं. बाकी बचे राज्यों में ​दिल्ली, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, केरल और पश्चिम बंगाल शामिल हैं.

Monday, July 23, 2018

渤海溢油环境诉讼七年长跑,拷问中国海洋法制

年11月发起诉讼的唐山湾国际旅游岛20户旅游经营者最终与康菲达成和解协议,后者将向前者支付赔偿款,以补偿2011年一次重大海上油田溢油事故造成的经济损失。目前,赔偿款的数额是否达到原告在起诉书中提出的2620万元,尚处于保密阶段。管以和解告终(同一事件的其他民间诉讼至今尚无胜诉),但这一案件旷日持久的诉讼历程显示出,中国近海石油开采事故的追责和赔偿机制仍然薄弱。

环境灾难​

2011年6月4日和17日,一块离最近的城市仅80公里的海上油田连续发生严重溢油事故,合作勘探开发方中国海洋石油总公司和康菲石油中国有限公司反应缓慢,溢油大范围扩散,造成油田周边及其西北部约6200平方公里的海域海水污染。
蓬莱19-3油田溢油事件成为了近年来中国近岸最大的海洋环境灾难。位于这一溢油事故地点西北方向不到200公里的河北省唐山湾国际旅游岛月坨岛景区,则刚好位于这一灾难辐射范围的边缘。
国家海洋局发布的官方事故调查报告显示:在事故发生一个多月后,河北唐山浅水湾岸滩发现长约500米的油污带。但在国家海洋局与中海油和康菲2012年4约达成的最终调解协议中,后二者分担的16.83亿元赔偿款却未覆盖唐山旅游业者的损失。
根据协议,这些赔偿款只用于解决河北、辽宁省部分地区养殖生物和渤海渔业资源损害赔偿和补偿问题,但同在渤海沿岸的山东和天津渔民和养殖户却并不属赔偿之列,旅游业也不属于接受赔偿的行业。2012年8月,包括月坨岛旅游经营者在内的20家旅游业者依法向负责海上溢油事故赔偿调解的国家海洋局提交了一份行政调解的申请书,希望后者通过行政调解使康菲石油中国公司支付赔偿。
在这份文件中,旅游业者们称其旅游经营收入受溢油事件影响损失达2620万元人民币。一直参与本案诉讼的原告律师霍志剑告诉中外对话,国家海洋局的答复只是:目前不具备行政调解的条件。于是旅游业者们于2012年11月到天津海事法院递交了起诉材料。但直到2015年5月4日,该案才终于被正式立案受理。又过了三年,和解方案才最终达成。从旅游业者申请行政调解失败到最终实现司法调解,这六年中,究竟发生了什么?
由于很难认定旅店、餐饮、商店和其他旅游机构经营损失的下降是由油污损害所造成的,在过往的国际司法实践中,旅游业者很少获得胜诉判决。国际油污赔偿基金( )原则上认为,尽管这类损失不是直接由污染引起,但其所遭受的损失是石油泄漏的可预见的后果,因此可以被认定是污染所引起的损害。但在具体的司法实践中,法院却往往驳回此类诉讼。
原告方律师夏军承认,本案原告的损失并非溢油本身所直接造成,是通过信息传播和游客减少而间接发生。但中国人民大学心理学系副教授韦庆旺认为,“这里的关键在于污染严重损害了休闲旅游地的核心功能”,都市的游客在休闲时更加关注休闲环境中的自然性,甚至一般的人工环境或人工环境元素都会破坏游客的休闲体验和压力缓解,更何况是严重的污染事件。
对于这一案件的原告方,此次获得和解协议而非败诉,相当于法庭对其辛苦求证的溢油事故与旅游业损失之间的关联给予了一定程度的认可。
但与之对应的,是同样坚持了多年的天津渔民的赔偿诉讼一审败诉,而山东青岛的500多名渔民仍在等待开庭审理。
渤海溢油事故后的环境诉讼无一不是漫长而艰难的。这些案件的举步维艰,映衬出中国法律体系处置海上石油开采事故能力的薄弱。
2010年美国墨西哥湾的深水地平线漏油事件之后,美国提升了海洋能源开发的监管力度。蓬莱19-3油田溢油事故之后,中国的法律界人士也希望以此作为一个契机修改和完善《海洋环境保护法》。
2012年,立法部门全国人大在网站上表示,此次渤海溢油事件后,人大和国务院开始着手修订海洋环境保护法。环保部、农业部、海洋局也参与其中。
2013年和2016年,《海洋环境保护法》两次修订,增加了一系列和海岸工程环境污染相关的内容。例如,2013年的修订规定:海岸工程建设项目的单位必须在可行性论证阶段制定和提交环境影响报告书;又规定,勘探开发海洋石油的单位必须编制、提交溢油应急计划。
2016年,《海洋环境保护法》增加了更细化的污染赔偿计算方法,规定造成重大或者特大海洋环境污染事故的,按照直接损失的30%计算罚款。
地方层面也不乏积极的信号,山东省于2016年印发了《山东省海洋生态补偿管理办法》,是中国第一个海洋生态补偿管理规范性文件。办法原则上支持污染受害者,不是以具体、单个的因果关系作为判定依据,而是以整个区域的生态损失作为标准,被认为是海洋生态文明建设的一项制度创新。
不过,山东大学海洋学院教授王亚民指出,这一办法依然面临操作性问题,因为资源损失有专门的部门负责管理,比如生物资源由渔业部门管理、矿业资源由矿产部门管理,而如果把资源损失去除,哪一部分是生态环境损失就计算起来面临困难、难于精确界定。他指出,国外,比如美国,一般都是只计算资源损失,而不提生态环境损失。

Wednesday, May 16, 2018

как Украина использует спецслужбы в борьбе с «российской пропагандой

Украина намерена расширить численность сотрудников Государственной службы специальной связи и защиты информации, чтобы усилить эффективность борьбы с «российской пропагандой». Соответствующий законопроект был зарегистрирован в Верховной раде. Новые сотрудники ведомства в первую очередь будут вести «разъяснительную работу» среди населения. По мнению экспертов, действующая власть в преддверии президентских выборов пытается таким образом повысить лояльность электората.

В Верховной раде по инициативе кабинета министров зарегистрирован законопроект, который изменит работу Государственной службы специальной связи и защиты информации Украины (создана на базе Департамента специальных телекоммуникационных систем и защиты информации СБУ). Если документ будет принят, то правительство сможет увеличивать количество сотрудников Госспецсвязи по своему усмотрению без согласования с депутатами. В настоящий момент численность кадров ведомства находится в компетенции парламента.  
«Целью проекта закона является законодательное урегулирование вопроса общей численности Госспецсвязи с учетом мобилизационного развёртывания территориальных органов администрации Госспецсвязи и территориальных подразделений Госспецсвязи при формировании необходимой организационной структуры подразделений по требованиям военного времени и их пополнении человеческими мобилизационными ресурсами», — сказано в пояснительной записке к законопроекту. 
Источник RT в украинском правительстве заявил, что новые сотрудники Госспецсвязи, а также кадровый резерв СБУ будут бороться с «российской пропагандой» в основном на юго-востоке страны.