"मेरी उंगलियों और आंखों की पुतलियों पर किसी और का हक़ नहीं हो सकता. इसे सरकार मुझे मेरे शरीर से अलग नहीं कर सकती." आधार कार्ड पर सुप्रीम कोर्ट में एक वक़ील ने अपनी दलील में यह कहा
था.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में आधार का बचाव करते हुए भारत सरकार के तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि किसी भी व्यक्ति का अपने
शरीर पर मुकम्मल अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा, ''आपको अपने शरीर पर पूरा अधिकार है, लेकिन सरकार आपको अपने अंगों को बेचने से रोक सकती है. मतलब स्टेट आपके शरीर पर नियंत्रण की कोशिश कर सकता है.'' इस व्यापक बायोमेट्रिक डेटाबेस संग्रह को लेकर निजता और सुरक्षा के लिहाज से चिंता जताई जा रही है.
श्याम दीवान एक अहम याचिका के दौरान बहस कर रहे थे, जिसमें एक नए क़ानून को चुनौती दी गई है. इस क़ानून के मुताबिक आम लोगों को अपना इनकम टैक्स रिटर्न दाख़िल करने के लिए आधार को ज़रूरी बनाया गया है.
आधार आम लोगों की पहचान संख्या है जिसके लिए सरकार लोगों की बायोमेट्रिक पहचान जुटा रही है. आम लोगों की बायोमेट्रिक पहचान से जुड़ी जानकारी के डेटाबेस की सुरक्षा और आम लोगों की निजता भंग होने के ख़तरे को लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं.
सरकार के मुताबिक पहचान नंबर को इनकम टैक्स रिटर्न्स से जोड़ने की ज़रूरत, व्यवस्था को बेहतर ढंग से लागू करने और धोखाधड़ी को रोकने के लिए है.
वैसे भारत का बायोमेट्रिक डेटाबेस, दुनिया का सबसे बड़ा डेटाबेस है. बीते आठ साल में सरकार एक अरब से ज़्यादा लोगों की उंगलियों के निशान और आंखों की पुतलियों के निशान जुटा चुकी है.
भारत की 90 फ़ीसदी आबादी की पहचान, अति सुरक्षित डेटा सेंटरों में संग्रहित है. इस पहचान के बदले में आम लोगों को एक ख़ास 12 अंकों की पहचान संख्या दी गई है.
1.2 अरब लोगों के देश में केवल 6.5 करोड़ लोगों के पास पासपोर्ट हों और 20 करोड़ लोगों के पास ड्राइविंग लाइसेंस हों, ऐसे में आधार उन करोड़ों लोग के लिए राहत लेकर आया है जो सालों से एक पहचान कार्ड चाहते थे.
सरकार इस आधार संख्या के सहारे लोगों को पेंशन, स्कॉलरशिप, मनरेगा के तहत किए काम का भुगतान और उज्जवला गैस स्कीम और ग़रीबों को सस्ता राशन मुहैया करा रही है.
बीते कुछ सालों के दौरान आधार संख्या का दबदबा इतना बढ़ा है कि इसने लोगों के जीवन को प्रभावित करना शुरू कर दिया है.
समाजविज्ञानी प्रताप भानु मेहता आधार के बारे में कहते हैं, "यह आम नागरिकों को सशक्त बनाने के औजार के बदले अब सरकार द्वारा लोगों की निगरानी करने का हथियार बन चुका है."
देश भर में चलाई जा रही 1200 जन कल्याण योजनाओं में 500 से ज़्यादा योजनाओं के लिए अब आधार की ज़रूरत पड़ेगी. यहां तक कि बैंक और प्राइवेट फर्म भी अपने ग्राहकों के सत्यापन के लिए आधार का इस्तेमाल करने लगे हैं.
लोग इस आधार नंबर के ज़रिए अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं.
मीडियानामा न्यूज़ वेबसाइट के संपादक और प्रकाशक निखिल पाहवा कहते हैं, "इसे ज़बरन मोबाइल फ़ोन, बैंक ख़ाते, टैक्स फ़ाइलिंग, स्कॉलरशिप, पेंशन, राशन, स्कूल एडमिशन और स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े या फिर और भी बहुत कुछ से जोड़ने की कोशिश से लोगों की निजी जानकारियों के लीक होने का ख़तरा बढ़ेगा."
ऐसी आशंकाएं निराधार नहीं हैं. हालांकि सरकार ये भरोसा दे रही है कि बायोमेट्रिक डेटा बेहद सुरक्षित ढंग से इनक्रिप्टेड रूप में संग्रहित है. सरकार ये भी कह रही है कि डेटा लीक करने के मामले में जो भी दोषी पाए जाएंगे उन पर ज़ुर्माना लगाया जा सकता है, जेल भेजा जाएगा.
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