Tuesday, March 26, 2019

الدولة الأفريقية الأكثر جذبا للمبتكرين في مجال التكنولوجيا

على هامش القمة الثانية والثلاثين للاتحاد الأفريقي، وقفت الشابة الأثيوبية سلام وندِم في غرفةٍ مكتظةٍ بالحضور من ساسةٍ بارزين ومديرين تنفيذيين مرموقين لتقول: "أنا شابةٌ طموحةٌ وعلى استعداد لتغيير وجه بلادي أثيوبيا".
فقد كانت وندِم، البالغة من العمر 29 عاماً، مدعوةً للحديث أمام هذا التجمع في أحد أرقى فنادق العاصمة أديس أبابا، كواحدة من أصحاب المشاريع في مجال التكنولوجيا. وكانت تأمل في اغتنام هذه الفرصة لإقناع حكومات القارة بدعم النظم التكنولوجية الصديقة للبيئة.
ولحسن حظ وندِم فقد وجدت جمهوراً متجاوباً في أثيوبيا. ففي العام الماضي، شهد هذا البلد انتخاب آبي أحمد، 42 عاما، رئيساً للوزراء. وسرعان ما كان لهذا الرجل بصماته في مجالاتٍ عدة، عبر القيام بسلسلةٍ من الإصلاحات الشاملة، وهو ما تضمن - مثلاً - إطلاق سراح آلاف السجناء السياسيين، واستئناف العلاقات الدبلوماسية مع إريتريا.
وشملت سياساته أيضا إدخال تغييرات على قطاعات التعليم والمالية والاتصالات والأنشطة التجارية، وهو ما شكّل مؤشراً على أن التكنولوجيا أصبحت الآن أولويةً بالنسبة لحكومته.
وفي ضوء ذلك، تؤمن وندِم وغيرها بأن أديس أبابا ربما تكون في طريقها لأن تصبح قريباً واحدةً من مراكز الابتكار الرائدة في أفريقيا، ما يجعلها قد تنافس تلك القائمة بالفعل في هذا المضمار، مثل نيروبي ولاغوس وكيب تاون.
ومن المعروف أن نصف مراكز التكنولوجيا في القارة الأفريقية توجد حالياً في أربعٍة بلدان فقط، وهي كينيا ونيجيريا وجنوب أفريقيا وغانا. وتوفر هذه الدول 75 في المئة تقريباً من تمويل الشركات الناشئة، وهو تمويلٌ يتزايد بوتيرةٍ متسارعةٍ بفعل تدفق المستثمرين على أفريقيا. وفي عام 2018 وحده، ازداد ذلك التمويل بواقع أربعة أضعاف مُقارنةً بالعام السابق.
وتريد الشابة الأثيوبية أن تصبح بلادها وشركتها العاملة في مجال تصنيع المنظومات المستخدمة في مجال "الزراعة في الماء" جزءاً من هذه الموجة من النمو. وساعدها في تأسيس شركتها مركز "بلو موون"، وهو واحدٌ من المراكز الكثيرة المعنية برعاية المواهب والابتكارات في أديس أبابا.
ولا يختلف هذا المركز المؤلف من ثماني طوابق عن نظرائه من المراكز المماثلة في مختلف أنحاء العالم. لكن خلف سماته الشكلية التي تتصف بالجمال، تكمن رؤيةٌ غير معتادةٍ بشأن طبيعة المشكلات التي يتعين على التكنولوجيا إيجاد حلولٍ لها.
وفي هذا السياق، يقول بيتلهم داسي، وهو معلمٌ في مجال التكنولوجيا بمؤسسة "آي كوغ لابس" التي تعد أكبر مركز للذكاء الاصطناعي في البلاد، إن "التكنولوجيا تُستخدم في الدول المتقدمة لتوفير الراحة والرفاهية، لكنها في أثيوبيا توفر الضروريات نفسها".
وبالرغم من أن أثيوبيا شهدت نمواً اقتصادياً مستمراً وبنسبةٍ لا يُستهان بها على مدى عقدين من الزمان، فإنها لا تزال واحدةً من أقل دول العالم من حيث الناتج المحلي الإجمالي، فضلاً عن أن غالبية سكانها من المزارعين الذين يعيشون على حد الكفاف.
والآن يولي الشبان الأثيوبيون اهتمامهم بالتكنولوجيا في محاولة للتغلب على التحديات التي تواجههم. وتقول إيليني غابر-مادين، مُؤسسة "بلو موون"، إن "الأفكار العظيمة تشكل بالأساس حلولاً للمشكلات. وإذا كان هناك ما يوجد لدينا، فهو الكثير من المشاكل".
وترى غابر-مادين أن شركةً مثل "إم - بيسا"، التي تقدم خدماتٍ مصرفيةً عبر الهاتف وتتخذ من كينيا مقراً لها، تمثل نموذجاً يكشف عن كيف يمكن أن تؤدي التكنولوجيا إلى حدوث تحولاتٍ كبيرةٍ وفريدةٍ من نوعها في اقتصاديات الدول النامية. لكن الأمر لا يقتصر على ذلك، فالمناخ في مجالاتٍ مثل الزراعة والتعليم والرعاية الصحية، يبدو مهيئاً الآن لحدوث مثل هذه "الوثبات" التكنولوجية.
ومن بين النماذج الأثيوبية في هذا الصدد، شركةٌ ناشئةٌ تحمل اسم "فلويس"، تتبنى نهجاً راديكالياً على صعيد تصنيع مواسير للمياه بأسعارٍ معقولةٍ وباستخدام تقنياتٍ متطورة.
يقول ماركوس ليما، وهو أحد مؤسسي الشركة: "هناك الكثيرون ممن يسيرون لمسافاتٍ طويلةٍ للعثور على المياه. نريد ابتكاراً من النوع الذي يكون ذا مغزى في السياق المجتمعي من أجل إيجاد حلولٍ محليةٍ للمشكلات" الموجودة في المجتمع المحلي."

Wednesday, March 13, 2019

जो कि बाद में इतने अच्छे साबित

केएम सिंह आगे बताते हैं, "अस्सी के दशक में पंजाब की हालत बहुत ख़राब थी. वो पंजाब गए और ब्लैकथंडर ऑपरेशन में उनका जो योगदान रहा उसका वर्णन करना बहुत मुश्किल है. भारतीय पुलिस में 14-15 साल की नौकरी के बाद ही पुलिस मेडल मिलता है. ये अनूठे अफ़सर थे जिन्हें मिज़ोरम में सात साल की नौकरी के बाद ही पुलिस मेडल दे दिया गया. सेना में कीर्ति चक्र बहुत बड़ा पुरस्कार माना जाता है, जो सेना के बाहर के लोगों को नहीं दिया जाता. अजित डोभाल अकेले पुलिस अफ़सर हैं जिन्हें कीर्ति चक्र भी मिला."
डोभाल के जानने वालों का मानना है कि 2005 में रिटायर हो जाने के बावजूद भी वो ख़ुफ़िया हल्क़ों में काफ़ी सक्रिय थे. अगस्त 2005 के विकीलीक्स केबल में ज़िक्र है कि डोभाल ने दाऊद इब्राहिम पर हमला करवाने की योजना बनाई थी लेकिन मुंबई पुलिस के कुछ अधिकारियों की वजह से इसे अंतिम समय पर अंजाम नहीं दिया जा सका.
हुसैन ज़ैदी ने अपनी किताब 'डोंगरी टू दुबई' में इस घटना का विस्तार से ज़िक्र किया है. अगले दिन टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुंबई संस्करण में इस बारे में एक ख़बर भी छपी लेकिन डोभाल ने इसका खंडन किया. उन्होंने मुंबई मिरर को दिए इंटरव्यू में बताया कि उस समय वो अपने घर में बैठकर फ़ुटबाल मैच देख रहे थे.
जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और अजित डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया तो लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ. उसके बाद से मोदी सरकार में उनकी पैठ इस हद तक बढ़ गई कि कहा जाने लगा कि उन्होंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के असर को कम कर दिया है.
इसमें कोई संदेह नहीं कि उनकी निगरानी में भारत को कुछ बड़ी सफलताएं मिलीं हैं, चाहे वो फ़ादर प्रेम कुमार को आईएस के चंगुल से छुड़वाना हो या श्रीलंका में छह भारतीय मछुआरों को फाँसी दिए जाने से एक दिन पहले माफ़ी दिलवाना हो या देपसाँग और देमचोक इलाक़े में स्थायी चीनी सैन्य कैपों को हटाना हो डोभाल को वाहवाही मिली है लेकिन कई मामलों में उन्हें नाकामयाबी का मुंह भी देखना पड़ा है.
नेपाल के साथ जारी गतिरोध, नगालैंड के अलगाववादियों से बातचीत पर उठे सवाल, पाकिस्तान के साथ असफल बातचीत और पठानकोट हमलों ने अजित डोभाल को सवालों के कठघरे में खड़ा कर दिया है.
अंग्रेजी के अख़बार 'इंडियन एक्सप्रेस' के सह संपादक सुशांत सिंह कहते हैं, "आप मानेंगे कि जहाँ तक पड़ोसी देशों का संबंध है, भारत की स्थिति पिछले कुछ सालों में अच्छी नहीं रही है. चाहे मालदीव हो, चाहे नेपाल हो या पाकिस्तान के साथ कभी हाँ कभी ना का माहौल है. जहाँ तक आतंक और आंतरिक सुरक्षा का सवाल है, भारत पर दो-तीन आतंकवादी हमले हुए हैं, चाहे वो पठानकोट का हमला हो या गुरदासपुर का. कश्मीर में आतंकवाद बढ़ा है."
"इस क्षेत्र में अजित डोभाल से ज़्यादा उम्मीदें थीं क्योंकि ये उनका फ़ील्ड था. लेकिन यहाँ भी वो बेहतर काम नहीं कर पाए हैं."
वहीं जानेमाने सामरिक विश्लेषक अजय शुक्ल कहते हैं, "अजित डोभाल अपने समय के एक बहुत ही क़ाबिल और सफल इंटेलिजेंस अफ़सर रहे हैं. लेकिन ये कोई ज़रूरी नहीं कि अगर कोई शख़्स अपने फ़ील्ड का विशेषज्ञ हो तो दूसरे फ़ील्ड में भी उसको उतनी ही महारत हासिल होगी."
शुक्ल कहते हैं, "उनकी जानकारी विदेशी संबंधों, कूटनीति और सैनिक ऑपरेशनों के बारे में उतनी नहीं है जितनी इंटेलिजेंस के क्षेत्र में. जब ऐसा ऑपरेशन आता है जिसमें ये तीनों पहलू मौजूद होते हैं तो एक इंसान के लिए अपने स्तर पर सारे फ़ैसले लेना शायद उचित नहीं है. ऐसे जटिल ऑपरेशन के समय उन्हें सारे फ़ैसले ख़ुद लेने की बजाए क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप की बैठक बुलानी चाहिए थी. अकेले ऐसे फ़ैसले लेने से बचना चाहिए था, जो कि बाद में इतने अच्छे साबित न हों."V